रंगों के त्यौहार’ के तौर पर मशहूर होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग, गुलाल और पानी फेंक कर मनाया जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है।
होली का पर्व हिन्दुओं के द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। होली पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाने वाला त्योहार है। हर भारतवासी होली का पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। सभी लोग इस दिन अपने सारे गिले, शिकवे भुला कर एक दुसरे को गले लगाते हैं। होली के रंग हम सभी को आपस में जोड़ता है और रिश्तों में प्रेम और अपनत्व के रंग भरता है। हमारी भारतीय संस्कृति का सबसे ख़ूबसूरत रंग होली के त्योहार को माना जाता है। सभी त्योहारों की तरह होली के त्योहार के पीछे भी कई मान्यताएं प्रचलित है। होली कैसे मनाते है, होली का महत्व क्या है, होलिका कौन थी इन सभी की जानकारी हम आपको अपने इस पोस्ट के जरिये देंगे। इसके साथ स्कूलों और कॉलेजों में छात्रों से होली पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है। हमारे इस पोस्ट से छात्र होली के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं जिससे वे स्कूल या कॉलेज में अच्छे से निबंध प्रतियोगिता में भाग ले सकें।
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होली पर निबंध
होली हर साल फाल्गुन (मार्च) के महीने में महीने में विभिन्न प्रकार के रगों के साथ मनाई जाती है। सभी घरों में तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं। होली हिंदुओं के एक प्रमुख त्योहार के रूम में जाना जाता है। होली सिर्फ हिन्दुओं ही नहीं बल्कि सभी समुदाय के लोगों द्वारा उल्लास के साथ मनाया जाता है। होली का त्योहार लोग आपस में मिलकर, गले लगकर और एक दूसरे को रंग लगाकर मनाते हैं। इस दौरान धार्मिक और फागुन गीत भी गाये जाते हैं। इस दिन पर हम लोग खासतौर से बने गुजिया, पापड़, हलवा, आदि खाते हैं। रंग की होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है।
होलिका के कहानी | होली का इतिहास
होली का त्यौहार मनाने के पीछे एक प्राचीन इतिहास है। प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नाम के एक असुर हुआ करता था। उसकी एक दुष्ट बहन थी जिसका नाम होलिका था। हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप के एक पुत्र थे जिसका नाम प्रह्लाद था। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोधी था। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु की भक्ति करने से बहुत रोका। लेकिन प्रह्लाद ने उनकी एक भी बात नहीं सुनी। इससे नाराज़ होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने का प्रयास किया। इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान मिला हुआ था। उसके बाद होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठ गई लेकिन जिस पर विष्णु की कृपा हो उसे क्या हो सकता है और प्रह्लाद आग में सुरक्षित बचे रहे जबकि होलिका उस आग में जल कर भस्म हो गई।
यह कहानी ये बताती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है। आज भी सभी लोग लकड़ी, घास और गोबर के ढ़ेर को रात में जलाकर होलिका दहन करते हैं और उसके अगले दिन सब लोग एक दूसरे को गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालकर होली खेलते हैं। होली हर साल फाल्गुन महीने में मनाई जाती है। जैसे जैसे होली का त्योहार पास आता है हमारा उत्साह भी बढ़ता जाता है। होली सच्चे अर्थों में भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, जिसके रंग अनेकता में एकता को दर्शाते हैं। लोग एक दूसरे को प्रेम-स्नेह की गुलाल लगाते हैं , सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं और एक दूसरे का मुँह मीठा करवाते हैं।
भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। आज भी ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। लठमार होली जो कि बरसाने की है वो भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी तरह मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाते हैं। कुमाऊँ की गीत बैठकी होती है जिसमें शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। होली के कई दिनों पहले यह सब शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा प्रचलित है। विभिन्न देशों में बसे हुए प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग तरीके से होली के शृंगार व उत्सव मनाया जाता है। जिसमें अनेक समानताएँ भी और अनेक भिन्नताएँ हैं।
लेकिन रंग होली का भाग कैसे बने?
यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती।
होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।
होली एक प्राचीन त्यौहार है
होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।
प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं।
कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।
होली के रंग
पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।
होली समारोह
होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है।
दिन 1 – पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है। दिन 2 – इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।
दिन 3 – इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।
होली में क्या नहि करना चाहिए।
आजकल अच्छी क्वॉलिटी के रंगों का प्रयोग नहीं होता और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले रंग खेले जाते हैं। यह सरासर गलत है। इस मनभावन त्योहार पर रासायनिक लेप व नशे आदि से दूर रहना चाहिए। बच्चों को भी सावधानी रखनी चाहिए। बच्चों को बड़ों की निगरानी में ही होली खेलना चाहिए। दूर से गुब्बारे फेंकने से आंखों में घाव भी हो सकता है। रंगों को भी आंखों और अन्य अंदरूनी अंगों में जाने से रोकना चाहिए। यह मस्ती भरा पर्व मिलजुल कर मनाना चाहिए।
आजकल कुछ लोगों भांग पीते तो बिलकुल ग़लत है ये बहुत ही ख़तरनाक नशा होता है जो कि गहरी असर कर सकती है।
कही कही तो नली के पानी या गंदे पानी लोगों पर डालते है तो सांस्कृति को धूमाईल करता है। इसलिए ये सब कभी भी भूल नहि करना चाहिए। कभी भी किसी पर्व के नाम पर कोई ग़लत काम नहि करना चाहिए।
Essay on Holi for Class 5,6,7,8,9 and 10 Students in hindi
अधिकतर परीक्षाओं में हमारे भारतीय त्योहारों के निबंध लिखने से सम्बंधित प्रशन देखने को मिलते है जिनमें से एक होली पर निबंध (Eassy on Holi for Class 5,6,7,8,9 and 10 Students) भी प्रमुख है। तो आज की इस पोस्ट का हमारा विषय होने वाला है होली पर निबंध (Holi Par Nibandh) । नीचे आपको होली से सम्बंधित निबंध दिया गया है जिसे आप अपनी परीक्षा के लिए याद कर सकते है। तो चलिए पढ़ते और याद करते है आज के इस होली के निबंध (Short Essay on Holi) को।
Essay on Holi in Hindi (होली पर निबंध-हिंदी)
होली रंगों का एक प्रसिद्ध त्योहार है जो हर साल फागुन के महीने में भारत के लोगों द्वारा बड़ी खुशी के साथ मनाया जाता है। ये ढ़ेर सारी मस्ती और खिलवाड़ का त्योहार है खास तौर से बच्चों के लिये जो होली के एक हफ्ते पहले और बाद तक रंगों की मस्ती में डूबे रहते है। हिन्दु धर्म के लोगों द्वारा इसे पूरे भारतवर्ष में मार्च के महीने में मनाया जाता है और उत्तर भारत के लोगों में तो इस त्यौहार को लेकर एक अलग ही उमंग और उत्साह देखने को मिलता है।
होलिका दहन के दौरान सभी इसके चारों ओर घूमकर अपने अच्छे स्वास्थय और यश की कामना करते है साथ ही अपने सभी बुराई को इसमें भस्म करते है। इस पर्व में ऐसी मान्यता भी है कि सरसों से शरीर पर मसाज करने पर उसके सारे रोग और बुराई दूर हो जाती है साथ ही साल भर तक सेहत दुरुस्त रहती है।
होलिका दहन की अगली सुबह के बाद, लोग रंग-बिरंगी होली को एक साथ मनाने के लिये एक जगह इकठ्ठा हो जाते है। इसकी तैयारी इसके आने से एक हफ्ते पहले ही शुरु हो जाती है, फिर क्या बच्चे और क्या बड़े सभी बेसब्री से इसका इंतजार करते है और इसके लिये ढ़ेर सारी खरीदारी करते। यहाँ तक कि वो एक हफ्ते पहले से ही अपने दोस्तों, पड़ोसियों और प्रियजनों के साथ पिचकारी और रंग भरे गुब्बारों से खेलना शुरु कर देते। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर रंग गुलाल लगाते हैं साथ ही स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेते।
ऐसा माना जाता है की होलिका दहन की अगले दिन धुलेंडी होती है। इस दिन सुबह आठ बजे के बाद से गली-गली में बच्चे एक-दूसरे पर रंग व पानी डाल होली की शुरआत करते है। इसके बाद तो धीरे-धीरे बड़ों में भी होली का रंग चढ़ना शुरू हो जाता है और शुरू हो जाता है होली के हुड़दंग। अधेड़ भी इस अवसर पर उत्साहित हो उठते हैं। दस बजते-बजते युवक-युवतिओं की टोलियां गली-मौहल्लों से निकल पड़ती है। घर-घर जाकर वे एक दूसरे को गुलाल लगा व गले मिल होली की बधाई देते है।
गलियों व सड़कों से गुज़र रही टोलियों पर मकानों की छतों पर खड़े लोगों द्वारा रंग मिले पानी की बाल्टियों उड़ेली जाती हैं। बच्चे पिचकारी से रंगीन पानी फेंककर व गुब्बारे मारकर होली आनंद लेते हैं। चारों ओर चहल-पहल दिखाई देती है। जगह जगह लोग टोलियों में एकत्र हो ढोल की थाप पर होली है भई होली है की तर्ज़ पर गाने गाते हैं। वृद्ध लोग इस त्यौहार पर जवान हो उठते हैं।
उनके मन में भी उमंग व उत्सव का रंग चढ़ जाता है। वे आपस में बैठ गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते है और ठहाके लगाकर हँसते हैं। अपराह्न दो बजे तक फाग का खेल समाप्त हो जाता है। घर में होली खेलने बाहर निकले लोग घर लौट आते है। नहा-धोकर शाम को फिर बाजार में लगे मेला देखने पड़ते हैं।
मुगल शासन काल में भी होली अपना एक अलग महत्व रखती थी। जहांगीर ने अपने रोजनामचे तुजुक-ए-जहांगीरी में कहा है कि यह त्यौहार हिन्दुओं के संवतसर के अंत में आता है। इस शाम लोग आग जलते है जिसे होली कहते है। अगली सुबह होली की राख एक-दूसरे पर फेंकते है। अल बरुनी ने अपने यात्रा वृतांत में होली का बड़े सम्मान के साथ उल्लेख किया है।
ग्यारहवीं सदी की शुरआत में जितना वह देख सका, उस आधार पर उसने बताया कि होली पर अन्य दिनों से अलग हटकर पकवान बनाए जाते है। अंतिम मुग़ल बादशाह अकबरशाह सानी और बहादुरशाह जफर खुले दरबार में होली खेलने के लिए प्रसिद्ध थे।
इस दिन अपने आप में एक बुराई लिए भी है। लोग मदिरापान आदि पर आपस में ही लड़ पड़ते है। वे उमंग व उत्साह के इस त्यौहार की विवाद में बदल देते है। कुछ सामजिक संस्थाओं द्वारा इस दिन शाम को हास्य सम्मेलन, कवि गोष्ठियां आदि आयोजित की जाती है, मुर्ख जुलूस निकाले जाते हैं एवं महामूर्ख सम्मेलन होते हैं।
इस प्रकार होली का त्यौहार विभिन्न रंगों से रंगा होता है जिसमे मौज मस्ती के रंगों से लेकर असली रंगों की बौछार शामिल होती है। पुरे भारतवर्ष में होली के त्यौहार की अपनी अलग ही महत्ता है और लोग इसे बड़ी उमंग और हर्षोउल्लास से प्रतिवर्ष मनाते आ रहें और मनाते रहेंगें।