Pregnancy tips for first time moms | Pregnancy tips for normal delivery | गर्भवती महिला के लिए कौन सा फल खाना चाहिए | गर्भावस्था के दौरान सुंदर बच्चे के लिए कैसे केयर करे।
Pregnancy Care Tips: गर्भावस्था में ऐसे रखें अपना और बच्चे का ध्यान
Pregnancy Care Tips: माँ एक, ऐसा सब्द है जिसको सबदो में ब्याख्या नहि किया जा सकता है। माँ बनना हर महिला के लिए एक ममतामयी अनुभव होता है। इसलिए ये जरूरी है कि गर्भावस्था खुद की और बच्चे की उचित देखभाल की जाए। जरा सी लापरवाही बड़े नुकसान का कारण बन सकती है। आइए जानते हैं गर्भावस्था के दौरान फायदा पहुंचाने वाली कुछ खास टिप्स के बारे में जाे आपकी ही नहीं बल्कि गर्भावस्थ शिशु की सेहत भी बनाएं रखेंगी :-
जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें
अच्छी प्रसवपूर्व देखभाल आपके और गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत जरुरी है। इसलिए डॉक्टर से तुरंत मिले और अपना पहला प्रसवपूर्व अप्वाइंटमेंट तय करें।
गर्भावस्था की शुरुआत में जल्दी डॉक्टरी चेक-अप करवाने के बहुत सारे फायदे हैं जैसे की:
आपको शुरुआत से ही स्वस्थ गर्भावस्था के लिए अच्छी सलाह मिल जाएगी।
आपके पास कोई भी जरुरी अल्ट्रासाउंड स्कैन या टेस्ट करवाने का पर्याप्त समय होगा।
कुछ विशेष स्वास्थ्य परिस्थितियों के लिए जांच हो सकेगी, जिनमें अतिरिक्त देखभाल की जरुरत हो या फिर जिनसे जटिलताएं हो सकती है।
यदि आपने अभी डॉक्टर का चयन नहीं किया है, तो यह अब शुरु कर दें। इसके लिए दोस्तों और परिवारजनों से सुझाव लें अपने बर्थ क्लब या पड़ोसी से जो ये सभी का अनुभव रखती हो। एक अच्छी डॉक्टर वही है, जो आपकी व्यक्तिगत देखभाल कर सके, आपको सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करे, आपको पूरी अहमियत देते हुए आपके सवालों का जवाब धैर्यता से दे।
आदर्श रूप में, ऐसी डॉक्टर का चयन करें, जिनका क्लिनिक या अस्पताल आपके घर के पास हो। आपको किसी आपात स्थिति में उन तक जल्दी पहुंचने की जरुरत हो सकती है, इसलिए यह अच्छा होगा कि उनका मोबाइल नंबर अपने पास ही रखें।
सही डॉक्टर और अस्पताल ढूंढ़ने में समय लग सकता है। इस बीच आप अपनी वर्तमान डॉक्टर को अपनी गर्भावस्था के बारे में बताएं। या फिर कोई नज़दीकी गवर्न्मेंट हॉस्पिटल में दिखा सकते है ताकि सभी कुछ समय से हो सके, यदि आप कोई दवाएं ले रही हैं या कोई चिकित्सकीय समस्या है, तो यह भी उन्हें बताएं। वे भी आपको किसी अच्छे डॉक्टर या अस्पताल के बारे में सुझाव दे सकती हैं।
– भारी वजन ना उठाएं , जैसे कि पानी से भरी बाल्टी, सील-बट्टा, भारी कुर्सी, बक्सा, और कोई भी ऐसा चीज़ जो 4-5 किलो से ज़्यादा वजन हो इत्यादि।
– बहुत देर तक ना खड़े रहे। यदि आपको किचन में बहुत देर तक खड़ा होना पड़ता है तो वहां कुर्सी का इस्तेमाल करें। या फिर थोड़ी थोड़ी देर रेस्ट करते हुए काम करे।
– सीढ़ियों का प्रयोग कम से कम करें। यदि करना ही पड़े ताे एक या दो बार करने की काेशिश करें।
– हील वाली सैंडल तो बिलकुल भी न पहनें। – बाहरी खाना ना लें, खासतौर पर जंक फूड से परहेज करें।
– सिगरेट, शराब या अन्य किसी भी नशे का प्रयोग न करें। नशा बच्चे के दिमागी विकास पर नकारात्मक असर डालता है। वैसे भी हम भारतवाशी वशुदेव कूटूम्बकाह को पालन करते है और याहा नारियों को सीता,दुर्गा और लक्ष्मी के रूप में देखा जाता है तो ऐसे भी ये सब का सेवन नारी के लिए उचित नहि है इससे आपमें सीता,दुर्गा और लक्ष्मी को देखने वाले लोगों के भावनाओं पर चोट लगेगा।
– पर्याप्त नींद लें। गर्भावस्था के दौरान दिन में कम से कम दो घंटे जबकि रात में आठ घंटे की नींद स्वस्थ मां और शिशु के लिए बहुत जरूरी है। इससे गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत ठीक रहने के साथ मां को भी गर्भावस्था के दौरान कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी नहीं होती है।
– कम से कम 3 – 4 लीटर पानी रोज पिंए।
गर्भावस्था में खानपान कैसे होना चाहिया।
गर्भावस्था के प्रारंभिक तीन महीनों में कई महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस या जी मचलाने या मितली आने की शिकायत होती है। इस अवधि में सुबह बिस्तर से निकलने से पहले ही सूखा बिस्किट खा लें। थो़ड़ी बहुत चाय-कॉफी और हल्का खाना, फल, सलाद खाते रहें। बच्चे के समुचित विकास के लिए मां की खुराक में ज्यादा कैलोरी, प्रोटीन, आयरन और कैल्शियम आवश्यक है।
गर्भवती महिला को अपनी सेहत को बेहतर रखने के लिए पौष्टिक आहार लेना चाहिए। इसमें दाल, रोटी, चावल, मौसमी सब्जी के साथ फल, मेवे, गुड़ और गुड़ से बनी चीजें खानी चाहिए।
रोजाना फल और सब्जियां
शरीर में आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन की मात्रा का ध्यान देना होगा। कमी अधिक है तो डॉक्टर की राय से आयरन, कैल्शियम की गोली लेनी चाहिए। इससे जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं।
रोजाना प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन जैसे मछली, कम वसा वाला मांस, बीन्स जैसे राजमा, लोबिया, मूंग और साबुत मूंग, मेवे, सोया और दाल-दलहन।
प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा अंडे से पूरा किया जा सकता है। हालांकि, आधे उबले हुए (हाफ बॉयल एग) या अधपके अंडे खाने से साल्मोनेला का खतरा रहता है। यह एक प्रकार का बैक्टीरियल संक्रमण है जो आंतों को प्रभावित करता है। इसमें उल्टी, दस्त, ऐंठन, बुखार, सिरदर्द और मल में खून आता है। ये ध्यान रहे कि अंडे अच्छे से उबले हुए हो।
प्रतिदिन दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करें, जैसे दूध, दही, चीज़, छाछ व पनीर। अगर आपको दूध नहीं पचता है तो कैल्शियम युक्त अन्य विकल्प जैसे छोले, राजमा, जई (ओट्स), बादाम, सोया दूध और सोया पनीर (टोफू) का चयन कर सकते हैं।
अगर आप मांसाहारी है तो सप्ताह में दो बार मछली ज़रूर खाए मछली में प्रोटीन, विटामिन डी, खनिज और ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, जो आपके शिशु के तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए जरुरी होते हैं।
यदि आपको मछली पसंद नहीं है या आप शाकाहारी हैं, तो आप मेवे, सोया उत्पाद और हरी पत्तेदार सब्जियां, का इस्तेमाल कर सकती है।
आपको गर्भावस्था में दो लोगों के लिए खाने की जरुरत नहीं है। भारत में अधिकांश डॉक्टर दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 अतिरिक्त कैलोरी के सेवन की सलाह देते हैं। फिर भी यह ध्यान रखें कि गर्भ में एक नन्हा शिशु पल रहा है जिसके लिए आपको खाना है, न कि किसी बड़े व्यक्ति के लिए। कुछ इक्स्पॉर्ट का कहना है। की बच्चे को जन्म होने तक उनका पेट लगभट एक मटर के दाने के बराबर होता है। इसलिए आप पोस्टिक आहार खाए न की भोजन की मात्रा को दुगना करे। इससे बच्चे को दबने की आशा हो जाती है।
गर्भावस्था में खाने की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें
– फलों और सब्जियों को अच्छे से धोएं ताकि मिट्टी या गंदगी हट जाए।
– मांस और रेडिमेड भोजनों को अच्छी तरह पकाएं और कोल्ड क्योर्ड मांस जैसे कि सलामी आदि का सेवन न करें।
– बाग-बगीचे की मिट्टी छूनें से पहले दस्ताने पहने या फिर किसी और से यह काम करने को कहें।
– कच्चा दूध कभी न पिए इससे लिस्टिरिया नामक रोग हो सकता है।
– अधपके भोजन जैसे कि रेडीमेड भोजन – ये डिलेवेरी तक ना ही खाए तो बेहतार होगा।
– कॉन्टिनेंटल खाने में किसी भी तरह का पाटे- वेजिटेबल या मांस से बना हुआ – कच्चे या हल्के पके अंडे या कच्चे अंडो से बने खाद्य पदार्थ जैसे मैयोनीज़ – ये बिलकुल भी ना खाए, अच्छे से पका कर ही खाए।
– कच्च या अधपका मांस – ये बिलकुल भी ना खाए, अच्छे से पका कर ही खाए।
– कच्ची सीपदार मछली – ये बिलकुल भी ना खाए, अच्छे से पका कर ही खाए।
हमेशा खाना छूने से पहले अपने हाथ धोएं, और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।
प्रसवपूर्व सप्लीमेंट्स लें
डॉक्टर के अनुसार, आप आयरन, कैल्शियम और विटामिन डी अनुपूरक गर्भावस्था के अंत तक और स्तनपान के दौरान लेने होंगे। इनकी खुराक आपके स्वास्थ्य और आहार पर निर्भर करेगी, जैसे कि आप शाकाहारी है, वीगन हैं या मांसाहारी हैं।
कोशिश करें कि तैलीय मछलियों जैसे कि भिंग, बांगड़ा, रावस और पेड़वे आदि का सेवन सप्ताह में दो बार करें।
होने वाले शिशु की हड्डियों और दांतों के विकास के लिए कैल्शियम की मात्रा अधिक लें। यह आपको पीठ और कमर दर्द से निजात दिलाएगा और ब्रेस्ट फीडिंग के लिए भी तैयार करेगा। इसके लिए दूध व दूध की बनी चीजें, फलियां, हरी पत्तेदार सब्जियां, खास तौर से पालक, मूंगफली आदि को डाइट में शामिल करें।
कैसी एक्सरसाइज करें
स्वस्थ और फिट रहने के लिए एक्सरसाइज से बेहतर और कोई तरीका नहीं है। प्रेगनेंसी में बढ़ने वाले वजन को भी एक्सरसाइज से कंट्रोल किया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो नियमित व्यायाम से मां और शिशु दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रहते हैं लेकिन गर्भावस्था में सही एक्सरसाइज चुनना बहुत जरूरी है।
सप्ताह में कम से कम 150 मिनट मॉडरेट इंटेसिंटी एक्सरसाइज करें। रोज कुछ मिनट पैदल चलें। लेकिन भारी वजन उठाने वाली और कठिन व्यायाम करने से बचें।
स्वस्थ वजन बनाए रखने में मदद, हालांकि, गर्भावस्था के दौरान कुछ वजन बढ़ना सामान्य है।
शिशु के जन्म के बाद आपका पहले वाले आकार में आना आसान बनाता है।
यदि आप कोई खेल खेलती हैं, तो इसे जारी रखने के बारे में डॉक्टर से पूछें। आप जो स्पोर्ट खेलती हैं या एक्टिविटी करती है, यदि उसमें गिरने या धक्का लगने का खतरा हो या फिर जोड़ो पर जोर पड़ता हो, तो बेहतर है कि इसे गर्भावस्था में बंद कर दें।
आराम जरूर करें
गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में आप जो थकान महसूस करती हैं, वह आपके शरीर में संचारित हो रहे गर्भावस्था हॉर्मोनों के उच्च स्तर की वजह से होता है।
बाद में यह थकान रात में बार-बार उठने या फिर बढ़े पेट की वजह से आराम से न सो पाने के कारण हो सकता है।
करवट लेकर सोने की आदत डालें। तीसरी तिमाही में करवट लेकर सोने से शिशु तक रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है।
यदि रात में आपकी नींद में खलल पड़ता है, तो दिन में झपकी ले लें या फिर रात में जल्दी सो जाएं। यदि यह कर पाना भी संभव न हो तो कम से कम आधे घंटे या अधिक के लिए अपने पांवों को आराम देते हुए थोड़ा विश्राम करें।
यदि पीठ दर्द की वजह से आप सो नहीं पा रही हैं, तो करवट लेकर घुटने मोड़कर सोने से मदद मिल सकती है। वेज आकार के तकिये को अपने कूल्हों के नीचे लगाए, इससे पीठ पर जोर कम पड़ेगा।
दोपहर में एक झपकी आपके और आपके शिशु दोनों के लिए लाभकारी है। कामकाज में किसी और की मदद लें। स्वयं को पर्याप्त आराम मिले यह सुनिश्चित करने के लिए अपने काम के घंटे कम कर सकती हैं और जहां तक संभव हो सामाजिक कार्यक्रमों या पार्टी में जाना कम कर सकती हैं। अच्छी नींद पाने के ये उपाय आप आजमा सकती हैं।
एक्सरसाइज से भी आपको पीठ दर्द से कुछ राहत मिल सकती है। यह नींद से जुड़ी समस्याओं में भी मदद कर सकता है। बस आप सोने के समय के आसपास व्यायाम न करें।
चिंतामुक्त होकर सोने या रात में आंख खुलने के बाद फिर से सोने के लिए आप ये रिलैक्सेशन तकनीक आजमा सकती हैं:
प्रसवपूर्व योग
स्ट्रेचिंग
गहन श्वसन क्रिया और प्राणायाम
मानसिक चित्रण, गहन रिलैक्सेशन (योग निद्रा)
मालिश
स्ट्रेस
स्वास्थ्य का सबसे बड़ा दुश्मन है तनाव यानी स्ट्रेस। स्ट्रेस का असर गर्भवती महिला और उसके बच्चे दोनों पर पड़ता है। मानसिक और शारीरिक तनाव से दूर रह कर प्रेगनेंसी और प्रसव के दौरान कई संभावित जटिलताओं से बचा जा सकता है।
स्ट्रेस के कारण कंसीव करने में भी दिक्कत आ सकती है और यहां तक कि प्रीमैच्योर लेबर भी हो सकता है। यही वजह है कि प्रेगनेंट महिलाओं को खुश रहने की सलाह दी जाती है।
नियमित जांच कराएं
गर्भावस्था में नियमित जांच जरूरी है। इसमें हीमोग्लोबिन और ब्लड प्रेशर महत्त्वपूर्ण है। मां का हीमोग्लोबिन और ब्लड प्रेशर ठीक रहेगा तो गर्भ में पल रहा शिशु स्वस्थ होगा। हीमोग्लोबिन लेवल 12 से कम नहीं होना चाहिए।
हाई रिस्क प्रेगनेंसी में मां का एचबी कम है, ब्लड प्रेशर असंतुलित है और प्लेसेंटा नीचे की ओर है तो गर्भवती को समय-समय पर डॉक्टरी सलाह लेते रहना चाहिए।
न कराएं लिंग परीक्षण
ध्यान रहे कभी भी शिशु का लिंग परीक्षण करवाने के लिए अल्तरासाउंड न करवाएं। यह न केवल आपके और समाज के लिए हानिकारक है वरन् कानूनन अपराध भी है। प्रसूति विशेषज्ञ द्वारा नियमित रूप से आपकी खून की जांचें करवाई जाएंगी। हिमोग्लोबिन की जांच गर्भावस्था में तीन-चार बार करवाना आवश्यक है। आपका रक्त समूह (ब्लड ग्रुप) जानना जरूरी है। यह भी तय करें कि आप आर.एच. निगेटिव तो नहीं हैं। सातवें महीने में ग्लूकोज देकर शुगर की जांच होती है। इन सबके अलावा एचआईव्ही और हिपेटाइटिस बी की जांच करवा लेना चाहिए।
और डॉक्टर द्वारा दिया गया सुझाओ ज़रूर माने और समय पर अपना टिका ज़रूर ले जैसे की टेटनस एत्यादि।