छठ पूजा एक ऐसा पर्व जिसका इंतजार सालभर रहता है। सूर्य भगवान और छठी माता की आराधना को समर्पित यह पर्व केवल बिहार-झारखंड में नहीं, बल्कि अब धीरे धीरे पूरे देश में मनाया जाने लगा है।
यह बात अलग है कि ग्रामीण अंचलों की अपेक्षा शहर में इसके स्वरूप में काफी अंतर है पर श्रद्धा में कहीं कोई कमी नजर नहीं आती। बहुत ही धूम – धाम और पूर्ण श्रधा से मानते है।
गाँव में मनाने वाले छठ पर्व की बात ही कुछ और होती है। वहाँ बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के मन में इस पर्व के प्रति विशेष उत्साह नजर आता है। वे यह पर्व हर साल पूरी श्रद्धा व उल्लास के साथ मनाते हैं। ऐसा लगता है कि पूरा गाँव एक फ़ैमिली बनी हुए है और सभी मिलकर एक गाँव में प्राकृतिक माहौल में पूजा करते है लेकिन यहाँ सब कुछ कृत्रिम नजर आता है।
इसके बावजूद जो बात समान है वह है उल्लास और उमंग। पर्व के दौरान भजन और लोकगीत का दौर जारी रहता है। इस बार सप्तमी रविवार को आ रही है, इस वजह से पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है। रविवार और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य आराधना के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस बार ये दोनों ही बातें एक साथ हो रही हैं इसलिए पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है।
छठ महापर्व या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला यानी छठ महापर्व दीपावली के 6 दिन बाद यानी छठी तिथि को मनाया जाता है। यह एक हिन्दू पर्व है।
उसके अनुसार इस साल यानी 2022 में दिवाली 24 ओक्तूबर 2022 को है तो इसके 6 दिन बाद यानी छठी तिथि को यानी 30 ओक्तूबर 2022 को छठ महापर्व होगी।
छठ महापर्व ये बिहार – झारखंड के लिए सबसे बड़ा पर्व है, वैसे दसशरा और दीपावली भी बिहार – झारखंड के लिए सबसे बड़ा पर्व है लेकिन छठ पर्व को बिहार – झारखंड के महापर्व के नाम से जाना जाता है और बहुत ही श्रधा एवं धूम – धाम से मनाया जाता है।
सूर्य भगवान के उपासना वाला ये महापर्व लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व बिहार-झारखंड का सबसे बड़ा पर्व है और ये उनकी संस्कृति भी है। छठ महापर्व बिहार-झारखंड मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है शायद इसलिए इसे महापर्व के रूप में जाना जाता है। और ये अब बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं।
बिहार – झारखंड मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस छठ महापर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे जाते हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है और हो रहा है । छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को लिए समर्पित होता है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ महापर्व में कोई मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है। यानी किसी भी देवी-देवता या भगवान की प्रतिमा नहि रखा जाता है।
त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है।
2022 में छठ महापर्व को मलने के विधि और तारीख़ जानते है।
छठ महापर्व 4 दिनो का पर्व है जिसका सुरुआत नहाने-खाने वाले दिन से ही हो जाता है, निछे देखते है 2022 में कौन सी कब है।
- 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार : नहाय खाय से छठ पूजा का प्रारंभ।
- 29 अक्टूबर 2022, शनिवार: खरना
- 30 अक्टूबर 2022, रविवार -छठ पूजा, डूबते सूर्य को अर्घ्य।
- 31 अक्टूबर 2022, सोमवार, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, छठ पूजा का समापन, पारण का दिन
छठ महापर्व का पहला यानी दिन नहाय-खाय
छठ पर्व के पहले दिन को नहाय खाय वाला दिन कहा जाता है। इस दिन घर की साफ़ सफाई करके छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से शुद्ध सात्विक, शाकाहारी भोजन ग्रहण कर छठ व्रत की शुरुवात करते हैं। कही कही इस दिन को कद्दू-भात भी कहा जाता है। इस दिन व्रत के दौरान चावल, चने की दाल और कद्दू (घिया, लौकी) की सब्जी को बड़े नियम-धर्म से बनाकर प्रसाद रूप में खाया जाता है।
कही कही इसी दिन छठी मईया को पूजा स्थल को चुना जाता है जैसे: आप सभी जाहा भी पूजा करते होंगे वहा अपने अपने स्थल को जगाएँगे और छठी मईया को अहवाहन करते है।
छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना या लोहंडा
छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। इस दिन छठ व्रती यानी छठ महापर्व के व्रत रखने वाले दिन भर उपवास करने के बाद शाम को मीठा भोजन करते हैं।
जिसे खरना कहते हैं। खरना का प्रसाद बहुत ही सात्विक रूप से चावल को गन्ने के रस में बनाकर या चावल को दूध में बनाकर और चावल का पिठ्ठा और और विशेष प्रकार के सात्विक रोटी बनाई जाती है। शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद सबसे पहले छठ व्रती यह प्रसाद खाते हैं, उसके बाद घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद के रूप में वही भोजन मिलता है। और सभी पड़ोसी को भी प्रसाद के रूप में मिलता है।
छठ पूजा का तीसरा दिन दिनभर घर में चहल पहल का माहौल रहता है। अलग अलग एरिया की हिसाब से अपने पूजा के सामग्री में थोड़ा चेंजेज़ होता है लेकिन सभी जगह सात्विक और सुधता का विशेष ध्यान दिया जाता है।
किसी किसी एरिया में व्रत रखने वाले अपने आप को गरीब, लाचार और अशहाए मानते हुए अपने आप को छठी मईया को समर्पित करके भीग माँगते है और उन्ही पैसे से प्रसाद ख़रीदते है चाहे हो क्यों न करोर पति हो ओ ये देखना चाहते है कि हम सभी छठी मईया के भक्त है और उनके संतान है हमारे में कोई अभिमान नहि है हम आपके भक्तनी हैं और आपसे अच्छे रहने के भीख के रूप में आशीर्वाद माँग रहे है।
व्रत रखने वाले दिन डलिया और सूप में नानाप्रकार के फल, ठेकुआ, लडुआ (चावल का लड्डू), चीनी का सांचा इत्यादि को लेकर शाम को बहते हुए पानी (तालाब, नहर, नदी, इत्यादि) पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हुए परिवार के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं।
किसी किसी एरिया में व्रत रखने वाले शाम को वापस घर आजाते है और रात में छठ माता के गीत आदि गाए जाते हैं। लेकिन ये ज़्यादातर सहरी क्षेत्र में होता है
ग्रामीण एरिया में व्रत रखने वाले शाम को पूजा स्थल में ही टेंट लगा कर पूरी रात छठ माता के गीत आदि गाए जाते हैं।
छठ पूजा का चौथा दिन यानी पारण के दिन : चौथे और अंतिम दिन छठ व्रती को सूर्य उगने के पहले ही फिर से उसी तालाब, नहर, नदी पर जाना होता है और अगर वही है तो सबसे उतम है जहां वे तीसरे दिन गए थे। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान् सूर्य से प्रार्थना की जाती है। परिवार के अन्य सदस्य भी व्रती के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और फिर वापस अपने पूजा स्थान लौट के आते हैं।
छठ व्रती चार दिनों का कठिन व्रत करके चौथे दिन पारण करते हैं और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत संपन्न करते हैं। यह व्रत 36 घंटे से भी अधिक समय के बाद समाप्त होता है।
छठ महापर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र माह में और दूसरी बार कार्तिक माह में. चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है.
चैती छठ और कार्तिकी छठ में अंतर।
प्यारे पाठक, जैसा कि हम जानते है दोनो महापर्व को तुलना नहि कर सकते है लेकिन भक्तों की संख्या और लोकप्रियता के हिसाब से कुछ अंतर करने का कोसिस कर रहे है इसमें कोई त्रुटि होगी तो आप माफ़ कर दीजिएगा।
चैती छठ :
- इसमें व्रत रखने वाले की संख्या कम होती है क्योंकि इसमें फ़ास्ट यानी उपवास करना थोड़ा मुसकिल होता है क्योंकि इस समय तक गर्मी का मौसम आजाता है।
- लोगों को मानना है की व्रत रखना थोड़ा मुसकिल होता है इसलिए ये ज़्यादा महत्व वाले छठ पर्व है।
- ऐसा माना जाता है की ज़्यादातर समिल होने वाले भक्त मन्नत माँगे हुए होते है।
- इस समय व्रत रखने वाले की संख्या कम वजह से, व्रत की सामग्री उपलब्ध करना थोड़ा मुसकिल होता है
- इस समय व्रत की सामग्री थोड़ा महँगा होने के कारण गरीब भक्त, व्रत के सामग्री जुगाड़ करने में कठिनाई महसूस करते है
कार्तिकी छठ
- इसमें व्रत रखने वाले की संख्या काफ़ी ज़्यादा होती है क्योंकि इसमें फ़ास्ट यानी उपवास करना चैती छठ के हिसाब से काफ़ी आसान होता है
- कार्तिकी छठ में लोकप्रियता ज़्यादा होने के कारण सभी व्रत की सामग्री उपलब्ध करना बहुत आसान होता है।
- ज़्यादा भक्त होने के कारण व्रत सामग्री काफ़ी सस्ती होती है
आईए जानते है छठ पर्व के कुछ रोचक तथ्य कहानी।
छठ पूजा का इतिहास, छठ पूजा की कहानी:
महर्षि कश्यप और राजा प्रियंवद की कहानी:
पौराणिक कथाओ के अनुसार, एक राजा रहते थे जिनका नाम प्रियंवद था। राजा के कोई भी संतान नहीं थे। राजा बहुत दुखी रहते थे तो उन्होंने महर्षि कश्यप से अनुरोध करके संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया। और यज्ञ करने के बाद महर्षि ने प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर प्रसाद के रुप में ग्रहण करने के लिए दी। यह खीर खाने से उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन ओ सफल नहि रहा, उनका पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। यह देख राजा बहुत दुखी हो गए। उसके बाद राजा प्रियंवद अपने मरे हुए पुत्र को लेकर शमशान गए और दुखी होते हुए पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे।
यह देखकर उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि वो उनकी पूजा करें। वास्तविक में ये छठी मईय ये देवी सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं। इसीलिए उनको छठी मईया कही जाती हैं। जैसा माता ने कहा था ठीक वैसे ही राजा ने पुत्र इच्छा की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। यह व्रत करने से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि छठ पूजा संतान प्राप्ति और संतान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है।
महाभारत काल में छठ पर्व और सूर्यपुत्र कर्ण की कहानी:
एक अन्य कथा के अनुशार छठ पर्व का आरंभ महाभारत काल के समय में हुआ था। कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य पूजा करते थे एवं उनको अर्घ्य देते थे। सूर्यनारायण की कृपा और तेज से ही वह महान योद्धा बने।
इसलिए आज भी छठ में सूर्य को अर्घ्य देने परंपरा चली आ रही है। इस संबंध में एक कथा और मिलती है कि जब पांडव अपना सारा राज-पाठ कौरवों से जुए में हार गए, तब दौपदी ने छठ व्रत किया था। इस व्रत से पांडवों को उनका पूरा राजपाठ वापस मिल गया था। लोक प्रचलित मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव और छठी मईया भाई-बहन हैं। इसलिए छठ के पर्व में छठी मईया के साथ सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
देव माता अदिति की कहानी:
ऐसा मान्यता है की देव माता अदिति ने सबसे पहले छठ पूजा की थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के द्वारा देवता हार गये थे, तब माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। उनसे प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र के रूप में हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता है कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
छठ पर्व से जुड़े कुछ रोचक तथ्यः
– यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी (चार दिन) तक मनाया जाता है।
– षष्ठी की शाम सूर्य अस्त होने से कुछ समय पूर्व ही पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्यास्त के बाद लोग पानी से बाहर आते हैं।
– हर धर्म के अनुयायी मनाते हैं इस पर्व को।
– सप्तमी को सूर्योदय से पूर्व ही लोग जल में खड़े हो जाते हैं तथा सूर्योदय होने पर सूर्य की पूजा की जाती है।
– पंचमी से सप्तमी तक रखा जाता है व्रत।
– छठ पर्व को बिहार – झारखंड का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, इसलिए इसे महापर्व कहते है।
– यह त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों मे जैसे झारखंड ,बिहार, उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में बड़े ही धूम धाम से एकजुट हो कर मनाया जाता है|
– इस महापर्व में उगते हुए भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है|
– छठी माता को भगवान सूर्य देव का बहन माना जाता है|
– सूर्य देव की पूजा करने से छठी माता खुश होती हैं और मनोवांछित वरदान देती है|
– 4 दिनों का यहा त्योहार दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है|
– भैयादूज के बाद यह त्योहार मनाया जाता है|
– एक मात्र ऐसा त्योहार जो की वैदिक काल से अब तक मनाया जा रहा|
– यह त्योहार सबसे ज्यादा बिहार में मनाया जाता है और ईसलिए इसे बिहारियों का त्योहार भी कहा जाता है|
– छठ ऐसा त्योहार है जिसमे किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा नहीं होती|
– इस त्योहार को पुरुष और महिलाएं दोनों कर सकती हैं|
– पुरुषों के अपेक्षा महिलाएं इस त्योहार में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती है|
– इस त्योहार को पानी के श्रोत जैसे नदी , तालाब , कुंआं के आसपास किया जाता है|
– इस त्योहार को पर्यावरण की पूजा भी कह सकते है क्यूंकी पर्यावरण की साफ सफाई मे विशेष ध्यान रखा जाता है|
छठ पूजा में प्रयोग होने वाली सामग्री
- दौरी या डलिया
- सूप– पीतल या बांस का
- नींबू नारियल (पानी सहित)
- पान का पत्ता
- गन्ना पत्तो के साथ
- शहद
- सुपारी
- सिंदूर
- कपूर
- शुद्ध घी
- कुमकुम
- शकरकंद / गंजी
- हल्दी और अदरक का पौधा
- नाशपाती व अन्य उपलब्ध फल
- अक्षत (चावल के टुकड़े)
- खजूर या ठेकुआ
- चन्दन
- मिठाई
- इत्यादि
छठ पूजा के अन्य / दूसरे नाम
- छठी माई की पूजा
- डाला छठ
- सूर्य सस्थी
- डाला पूजा छठ पर्व
छठ पूजा व्रत के महत्वपूर्ण नियम
छठ पूजा से सम्बंधित कई नियम व मान्यताएं हैं, हालांकि, समय के साथ-साथ इन नियमों में बदलाव होते जा रहे हैं। आइये, हम छठ से सम्बंधित प्रमुख नियम जानते हैं:
- छठ पूजा के चार दिन घर पर मांस आहार, और लहसुन प्याज नहीं खाये जाते हैं।
- इस व्रत के दौरान व्रतधारी व्यक्ति ज़मीन पर सोते हैं। और बिछौने में चटाई और ओढ़ने में कंबल प्रयोग करते हैं।
- छठ पूजा में महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनते हैं।
- छठ व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। व्रतधारी को इन चार दिनों में शारीरिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
- छठ पूजा के दौरान अथवा यह पर्व आने वाला हों तब किसी करीबी सगे संबंधी का अवसान हो जाये तब उस वर्ष यह व्रत नहीं करना चाहिए।
- छठ पूजा के पवित्र पर्व पर काम, क्रोध, मोह, और लोभ का त्याग कर के सुगम सात्विक आचरण करना चाहिए।
- छठ व्रती बिना सिलाई वाले कपड़े पहनते हैं। जब की त्यौहार में शामिल व्यक्ति नए-नए वस्त्र धारण कर सकते हैं।
- एक बार छठ पूजा व्रत का आरंभ करने के बाद उसे प्रति वर्ष निरंतर करना चाहिए, जब तक की आगे की पीढ़ी की विवाहित महिला व्रत करना आरंभ न कर दे।
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