Makar Sankranti 2022: मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रसिद्द त्यौहार है। वर्ष 2022 में मकर संक्रांति का पर्व पंचांग के अनुसार 14 जनवरी 2022, शुक्रवार को पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी की तिथि को मनाया जाएगा. आपको बताना चाहूँगा की इस दिन सूर्य धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं तो इस प्रक्रिया को संक्रांति कहा जाता है. मकर संक्रांति को सभी संक्रांति में अति महत्वपूर्ण माना गया है. कही कही मकर संक्रांति को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है और मकर संक्रांति पर स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है, उस दिन लोग स्नान करके चावल और तिल को छूते है।
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं संदेश कोट्स शायरी मैसेज फोटो स्टेटस
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति का त्योहार देशभर में अलग अलग जगहो पर अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है. मकर संक्रांति पर सूर्य देव उत्तरायण होते है. मान्यता के अनुसार इस दिन से ही ऋतु में परिवर्तन आरंभ हो जाता है. मकर संक्रांति के बाद से सर्दी में कमी आने लगती है यानि शरद ऋतु के जाने का समय आरंभ हो जाता है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है. ऐसे तो Merry Christmas के बाद ही दिन बड़ा और रात छोटा होना सुरु हो जाता है पर ऐसा माना जाता है मकर संक्रांति के बाद ही दिन लंबे रातें छोटी होने लगती हैं.
किसानो के लिए विशेष त्यौहार है मकर संक्रांति
फसलों की कटाई का त्यौहार
किसानो के लिए नई फसल और नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है। पंजाब, यूपी, बिहार, झारखंड समेत तमिलनाडु में यह वक्त नई फसल काटने का होता है, इसलिए किसान मकर संक्रांति को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। खेतों में गेहूं और धान की लहलहाती फसल किसानों की मेहनत का परिणाम होती है लेकिन यह सब ईश्वर और प्रकृति के आशीर्वाद से संभव होता है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को ’लोहड़ी’ के नाम से मनाया जाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रांति ’पोंगल’ के तौर पर मनाई जाती है, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार में ’खिचड़ी’ और मकर संक्रांति के नाम से मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर संक्रांति पर कहीं खिचड़ी बनाई जाती है तो कहीं दही चूड़ा और तिल के लड्डू बनाये जाते हैं। इस दिन कोई कही कही लोग विशेष रूप से ’खिचड़ी’ बनाते है और खाते है।
(शनि देव) पुत्र के घर आते हैं पिता (सूर्य देव)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं और शनि देव, सूर्य देव के पुत्र कहलाते हैं. पिता – पुत्र का संबंध होने के बाद भी पिता और पुत्र में नहीं बनती है जैसा कि माना जाता है की शनि देव, माता छाया कि पुत्र होने कारण और सूर्य देव द्वारा उनके माता छाया को त्याग करने के कारण, अपने पिता सूर्य देव से क्रोधित रहते है. यानि इनके आपस में संबंध अच्छा नहीं माने जाते हैं. इसके बाद भी सूर्य पुत्र की राशि में लगभग एक माह के लिए आते हैं. एक माह तक पिता पुत्र के घर में रहते हैं. मकर राशि में सूर्य का गोचर कई मामलों में शुभ फल देने वाला माना गया है.
मकर संक्रांति के पर्व को पिता-पुत्र के अनोखे मिलन से भी जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों पर भगवान विष्णु की विजय के तौर पर भी मकर संक्रांति मनाई जाती है। बताया जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने पृथ्वी लोक पर असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदरा पर्वत पर गाड़ दिया था। तभी से भगवान विष्णु की इस जीत को मकर संक्रांति पर्व के तौर पर मनाया जाने लगा।
स्नान और दान का महत्व
मकर संक्रांति के दिन लोगों स्नान करके तिल और चावल को छूकर ही खाना या तिल और लाई खाते है और दान का विशेष महत्च बताया गया है. मकर संक्राति पर पवित्र नदी में स्नान करने को अत्यंत शुभ माना गया है. इसके साथ ही दिन दान करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन खिचड़ी का दान बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है.
मकर संक्रांति से जुड़े त्यौहार
भारत में मकर संक्रांति के दौरान जनवरी माह में नई फसल का आगमन होता है। इस मौके पर किसान फसल की कटाई के बाद इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। भारत के हर राज्य में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।
जम्मू
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ के महीने में मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है।
बिहार
बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाना जाता है। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है।
बंगाल
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं।
असम
असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।
राजस्थान
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
पंजाब
लोहड़ी विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाने वाला पर्व है, जो फसलों की कटाई के बाद 13 जनवरी को धूमधाम से मनाया जाता है।
यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रांतों (प्रान्तों) में अलग-अलग नाम व भांति-भांति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।
विभिन्न नाम भारत में
- मकर संक्रांति (संक्रान्ति) : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू
- ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु
- उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड
- उत्तरैन, माघी संगरांद : जम्मू
- शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी
- माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
- भोगाली बिहु : असम
- खिचड़ी : उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
- पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
- मकर संक्रमण : कर्नाटक
विभिन्न नाम भारत के बाहर
- बांग्लादेश : Shakrain/ पौष संक्रान्ति
- नेपाल : माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी संक्रान्ति’
- थाईलैण्ड : सोंगकरन
- लाओस : पि मा लाओ
- म्यांमार : थिंयान
- कम्बोडिया : मोहा संगक्रान
- श्री लंका : पोंगल, उझवर तिरुनल
तीर्थ दर्शन और मेले
मकर संक्रांति के मौके पर देश के कई शहरों में मेले लगते हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार और दक्षिण भारत में बड़े मेलों का आयोजन होता है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु गंगा और अन्य पावन नदियों के तट पर स्नान और दान, धर्म करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि, जो मनुष्य मकर संक्रांति पर देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।